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 वसन्त पंचमी

वसंत पंचमी की पूजा के लिए तैयार एक सरस्वती प्रतिमावसंत पंचमी एक भारतीय त्योहार है, इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।

प्राचीन भारत में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था।जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।

बसन्त पंचमी कथा


सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों आ॓र मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है- प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु। अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूँ भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है।[१] पतंगबाज़ी का वसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा।


ऋतुराज बसंत के स्वागत का पर्व बसंत पंचमी


बसंत पंचमी धार्मिक एवं नई ऋतु आने का पर्व है। माघ मास के बीस दिन व्यतीत होते-होते शीत का प्रकोप काफी कम हो जाता है और शिशिर के पश्चात ऋतुराज बसन्त का आगमन होने लगता है। यद्यपि पेड़ों पर नये पत्ते और बसन्त ऋतु तो चैत्र-वैशाख में ही आती है, परन्तु बसन्त ऋतु के स्वागत में यह त्योहार मनाया जाता है। इसके साथ ही इसका बहुत अधिक धार्मिक महत्व भी है। आज भगवान विष्णु और मातेश्वरी सरस्वतीजी की पूजा तो की ही जाती है कामदेव तथा उनकी पत्नी रति की पूजा का भी विशिष्ट विधान है।
आज विद्या और कला की अधिष्ठात्री देवी सरस्वतीजी का जन्म दिवस है। यही कारण है कि नवरात्रों में दुर्गा पूजा के समान ही आज बड़ी धूमधाम से वीणा वादिनी सरस्वतीजी की पूजा की जाती है। सरस्वती पूजन के लिए एक दिन पूर्व से ही नियमपूर्वक रहकर, दूसरे दिन नित्य कर्मों से निवृत्त होकर कलश स्थापित करें। सर्वप्रथम गणेश, सूर्य, विष्णु, शंकर आदि भगवान की पूजा करके सरस्वतीजी का पूजन करना चाहिए।
सरस्वतीजी की पूजा में पीले रंग की वस्तुओं और फूलों के प्रयोग का विशिष्ट महत्व है। देवी के सामने पुस्तक रखकर दक्षिणा अर्पित कर आरती उतारी जाये और वासंती वस्त्र पहने जाएं। रेवड़ियों, केलों, किसोर इत्यादि का भोग लगाया जाये। मीठे केसरिया चावल बनाये जाएं। भगवान की मूर्ति तथा देवी सरस्वती की प्रतिमा को केसरिया रंग के वस्त्र पहनाने चाहिए। यह पूजा-उत्सव बिहार तथा बंगाल में बड़ी धूमधाम से शिक्षा संस्थानों तथा घरों में मनाया जाता है।
मातेश्वरी सरस्वती और भगवान विष्णु के अतिरिक्त आज कामदेव और रति की पूजा भी होती है। बसन्त कामदेव का सहचर है इसलिए कामदेव और रति की पूजा करके उनकी प्रसन्नता प्राप्त करनी चाहिए। आज पति को स्वयं परोसकर खाना अवश्य खिलायें। इससे पति के कष्टों का निवारण होता है और उसकी आयु में वृध्दि होती है।
बसन्त पंचमी को प्रात:काल तेल तथा उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए और पवित्र वस्त्र धारण करके भगवान नारायण का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए। इसके बाद पितृ-तर्पण और ब्राम्हण भोजन का भी विधान है। मंदिरों में भगवान की प्रतिमा का वासन्ती वस्त्रों और पुष्पों से श्रृंगार भी किया जाता है तथा बड़ा उत्सव मनाया जाता है। इस पंचमी को लोग पहले गुलाल उड़ाते थे और वासन्ती वस्त्र धारण कर नवीन उत्साह और प्रसन्नता के साथ अनेक प्रकार के मनोविनोद करते थे। यही कारण है कि बसन्त पंचमी को रंग पंचमी भी कहा जाता है।
ज्ञान और कला की देवी का जन्मदिन है वसंत पंचमी  

वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है।

यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं।

कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।

पर्व का महत्व


वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
पौराणिक महत्व
इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दंडकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे झूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।

ऐतिहासिक महत्व


वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। इसके बाद की घटना तो जगप्रसिध्द ही है। गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया। चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाणता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान॥ पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंद्रबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी। वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा संबंध है। एक दिन जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे, पर वह पढ़ता रहा। जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो दुर्गा मां की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा? बस फिर क्या था, मुल्ला जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया। कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा। वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना वसंत पंचमी (23.2.1734) को ही हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसंत पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती है। हकीकत लाहौर का निवासी था। अत: पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है। वसंत पंचमी हमें गुरू रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवष्त्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिश्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया। गुरू रामसिंह गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उध्दार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिश्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था। 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गोमांस ठूंस दिया। यह सुनकर गुरू रामसिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अत: युध्द का पासा पलट गया। इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फांसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।


जन्म दिवस

वसंत पंचमी हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्मदिवस (28.02.1899) भी है। निराला जी के मन में निर्धनों के प्रति अपार प्रेम और पीड़ा थी। वे अपने पैसे और वस्त्र खुले मन से निर्धनों को दे डालते थे। इस कारण लोग उन्हें 'महाप्राण' कहते थे। एक बार नेहरूजी ने शासन की ओर से कुछ सहयोग का प्रबंध किया, पर वह राशि उन्होंने महादेवी वर्मा को भिजवाई। उन्हें भय था कि यदि वह राशि निराला जी को मिली, तो वे उसे भी निर्धनों में बांट देंगे। जहां एक ओर वसंत ऋतु हमारे मन में उल्लास का संचार करती है, वहीं दूसरी ओर यह हमें उन वीरों का भी स्मरण कराती है, जिन्होंने देश और धर्म के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी।

सरस्वती पूजन व प्रार्थना

माँ सरस्वती हमारे जीवन की जड़ता को दूर करती हैं, सिर्फ हमें उसकी योग्य अर्थ में उपासना करनी चाहिए। सरस्वती का उपासक भोगों का गुलाम नहीं होना चाहिए। वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती के पूजन का भी विधान है।

कलश की स्थापना करके गणेश, सूर्य, विष्णु तथा महादेव की पूजा करने के बाद वीणावादिनी माँ सरस्वती का पूजन करना चाहिए। सुविधा के लिए माँ सरस्वती के आराधना स्तोत्र उपलब्ध हैं। 

माँ सरस्वती हमारे जीवन की जड़ता को दूर करती हैं, सिर्फ हमें उसकी योग्य अर्थ में उपासना करनी चाहिए। सरस्वती का उपासक भोगों का गुलाम नहीं होना चाहिए। वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती के पूजन का भी विधान है।  
    

सरस्वती प्रार्थना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥

जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥2॥

शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान्‌ बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥2॥

सनातन धर्म की कुछ अपनी विशेषताएं है। इन्हीं विशेषताओं के कारण उसे जगत् में इतनी ऊंची पदवी प्राप्त थी। इसके हर रीति-रिवाज,पर्व,त्योहार और संस्कार में महत्वपूर्ण रहस्य छिपा रहता है, जो हमारे जीवन की किसी न किसी समस्या का समाधान करता है, हमारे मानसिक व आत्मिक विकास का साधन बनता है, शारीरिक व बौद्धिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है, विचारों को एक नया मोड़ देता है। हमारे अधिकांश त्योहारों का किसी न किसी देवता की पूजा और उपासना से संबंध है। वसंत पंचमी का त्योहार विशेष रूप से ऋतु परिवर्तन के उपलक्ष्य में एक सामाजिक समारोह के रूप में मनाया जाता है। यह मानसिक उल्लास और आह्लाद के भावों को व्यक्त करने वाला त्योहार है। भारतवर्ष में वसंत का अवसर बहुत ही सुहावना, सौंदर्य का विकास करने वाला और मन की उमंगों में वृद्धि करने वाला माना जाता है। वसंत पंचमी का त्योहार माघ शुक्ल पंचमी को ऋतुराज वसंत के स्वागत के रूप में मनाया जाता है। मनुष्य ही नहीं जड़ और चैतन्य प्रकृति भी इस महोत्सव के लिए इसी समय से नया श्रृंगार करने लग जाती है। वृक्षों और पौधों में पीले, लाल और नवीन पत्ते तथा फूलों में कोमल कलियां दिखलाई पड़ने लगती हैं। आम के वृक्षों का सौरभ चारों ओर बिखरने लगता है। सरसों के फूलों की शोभा धरती को वासंती चुनरियां ओढ़ा देती है। कोयल और भ्रमर भी अपनी मधुर संगीत आरंभ कर देते है। वसंत आगमन के समय जब शीत का अवसान होकर हमारी देह और मन नई शक्ति का अनुभव करने लगते है, हमें अपना ध्यान जीवन के महत्वपूर्ण कार्यो में सफलता प्राप्ति के लिए उपयुक्त रणनीति बनाने के लिए लगाना चाहिए। संभवतया इसी कारण ऋषियों ने वसन्त पंचमी के दिन सरस्वती पूजा की प्रथा चलाई थी।

प्राकटयेन सरस्वत्या वसंत पंचमी तिथौ। विद्या जयंती सा तेन लोके सर्वत्र कथ्यते॥

वसंत पंचमी तिथि में भगवती सरस्वती का प्रादुर्भाव होने के कारण संसार में सर्वत्र इसे विद्या जयंती कहा जाता है। सरस्वती विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं। भगवती सरस्वती के जन्म दिन पर अनेक अनुग्रहों के लिए कृतज्ञता भरा अभिनंदन करे। उनकी कृपा का वरदान प्राप्त होने की पुण्य तिथि हर्षोल्लास से मनाएं यह उचित ही है। दिव्य शक्तियों को मानवी आकृति में चित्रित करके ही उनके प्रति भावनाओं की अभिव्यक्ति संभव है। इसी चेतना विज्ञान को ध्यान में रखते हुए भारतीय त8ववेत्ताओं ने प्रत्येक दिव्य शक्ति को मानुषी आकृति और भाव गरिमा से संजोया है। इनकी पूजा,अर्चन-वंदन, धारणा हमारी चेतना को देवगरिमा के समान ऊंचा उठा देती है। साधना विज्ञान का सारा ढांचा इसी आधार पर खड़ा है।

माँ सरस्वती के हाथ में पुस्तक ज्ञान का प्रतीक है। यह व्यक्ति की आध्यात्मिक एवं भौतिक प्रगति के लिए स्वाध्याय की अनिवार्यता की प्रेरणा देता है। अपने देश में यह समझा जाता है कि विद्या नौकरी करने के लिए प्राप्त की जानी चाहिए।

यह विचार बहुत ही संकीर्ण है। विद्या मनुष्य के व्यक्तित्व के निखार एवं गौरवपूर्ण विकास के लिए है। पुस्तक के पूजन के साथ-साथ ज्ञान वृद्धि की प्रेरणा ग्रहण करने और उसे इस दिशा में कुछ कदम उठाने का साहस करना चाहिए। स्वाध्याय हमारे दैनिक जीवन का अंग बन जाए, ज्ञान की गरिमा समझने लग जाएं और उसके लिए मन में तीव्र उत्कण्ठा जाग पड़े तो समझना चाहिए कि पूजन की प्रतिक्रिया ने अंत:करण तक प्रवेश पा लिया। कर कमलों में वीणा धारण करने वाली भगवती वाद्य से प्रेरणा प्रदान करती हैं कि हमारी हृदय रूपी वीणा सदैव झंकृत रहनी चाहिए। हाथ में वीणा का अर्थ संगीत, गायन जैसी भावोत्तेजक प्रक्रिया को अपनी प्रसुप्त सरसता सजग करने के लिए प्रयुक्त करना चाहिए। हम कला प्रेमी बनें, कला पारखी बनें, कला के पुजारी और संरक्षक भी। माता की तरह उसका सात्विक पोषण पयपान करे। कुछ भावनाओं के जागरण में उसे संजोये। जो अनाचारी कला के साथ व्यभिचार करने के लिए तुले है, पशु प्रवृत्ति भड़काने और अश्लीलता पैदा करने के लिए लगे है उनका न केवल असहयोग करे बल्कि विरोध, भ‌र्त्सना के अतिरिक्त उन्हे असफल बनाने के लिए भी कोई कसर बाकी न रखें। मयूर अर्थात् मधुरभाषी। हमें सरस्वती का अनुग्रह पाने के लिए उनका वाहन मयूर बनना ही चाहिए। मीठा, नम्र, विनीत, सज्जानता, शिष्टता और आत्मीयता युक्त संभाषण हर किसी से करना चाहिए। प्रकृति ने मोर को कलात्मक, सुसज्जिात बनाया है। हमें भी अपनी अभिरुचि परिष्कृत बनानी चाहिए। हम प्रेमी बनें, सौन्दर्य, सुसज्जाता, स्वच्छता का शालीनतायुक्त आकर्षण अपने प्रत्येक उपकरण एवं क्रियाकलाप में बनाए रखें। तभी भगवती सरस्वती हमें अपना पार्षद, वाहन, प्रियपात्र मानेंगी। माँ सरस्वती की प्रतीक प्रतिमा मूर्ति अथवा तस्वीर के आगे पूजा-अर्चना का सीधा तात्पर्य यह है कि शिक्षा की महत्ता को स्वीकार शिरोधार्य किया जाए। उनको मस्तक झुकाया जाए, अर्थात् मस्तक में उनके लिए स्थान दिया जाए। सरस्वती की कृपा के बिना विश्व का कोई महत्वपूर्ण कार्य सफल नहीं हो सकता। प्राचीनकाल में जब हमारे देशवासी सच्चे हृदय से सरस्वती की उपासना और पूजा करते थे, तो इस देश को जगद्गुरु की पदवी प्राप्त थी। दूर-दूर से लोग यहां सत्य ज्ञान की खोज में आते थे और भारतीय गुरुओं के चरणों में बैठकर विद्या सीखते थे, पर उसके बाद जब यहां के लोगों ने सरस्वती की उपासना छोड़ दी और वे वसंत पर्व को सरस्वती पूजा के बजाय कामदेव की पूजा का त्योहार समझने लगे और उस दिन मदन महोत्सव मानने लगे, तब से विद्या बुद्धि का ह्रास होने लगा और अंत में ऐसा समय भी आया जब यहां के विद्यार्थियों को ही अन्य देशों में जाकर अपने ज्ञान की पूर्ति करनी पड़ी। ज्ञान की देवी भगवती के इस जन्मदिन पर यह अत्यंत आवश्यक है कि हम पर्व से जुड़ी हुई प्रेरणाओं से जन-जन को जोड़ें। विद्या के इस आदि त्योहार पर हम ज्ञान की ओर बढ़ने के लिए नियमित स्वाध्याय के साथ-साथ दूसरों तक शिक्षा का प्रकाश पहुंचाने के लिए संकल्पित हों।

विद्या की अधिकाधिक सब जगह अभिवृद्धि देखकर भगवती सरस्वती प्रसन्न होती है। वसंत का त्योहार हमारे के लिए फूलों की माला लेकर खड़ा है। यह उन्हीं के गले में पहनाई जाएगी जो लोग उसी दिन से पशुता से मनुष्यता, अज्ञान से ज्ञान, अविवेक से विवेक की ओर बढ़ने का दृढ़ संकल्प करते है और जिन्होंने तप, त्याग और अध्यवसाय से इन्हे प्राप्त किया है उनका सम्मान करते है। संसार में ज्ञान गंगा को बहाने के लिए भागीरथ जैसी तप-साधना करने की प्रतिज्ञा करते है। श्रेष्ठता का सम्मान करने वाला भी श्रेष्ठ होता है। इसीलिए आइए हम इस शुभ अवसर पर उत्तम मार्ग का अनुसरण करे।